YATI NARSHIMHA NAND SARASWATI : दीपक त्यागी कैसे बने यति नरसिम्हा नंद सरस्वती

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नगाड़ा मीडिया | डासना गाजियाबाद

पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर चर्चा में आये मां काली मंदिर पीठ डासना के महंत नरसिम्हा नंद सरस्वती आजकल चर्चा में हैं, महंत पर किसी कार्यक्रम में भाषण के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप है. पुलिस द्वारा इस मामले में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है, आइये जानते हैं कि यति नरसिम्हा नंद सरस्वती आखिर कौन हैं?

एक इंजीनियर जो अपने अद्भुत साहस से बना नरसिम्हा नंद सरस्वती

डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद के खिलाफ शुक्रवार (4 अक्टूबर 2024) को भारत के कई हिस्सों में मुस्लिम भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किया। मुस्लिम भीड़ यति नरसिंहानंद को गुस्ताख़ बताते हुए अपने पैगंबर के अपमान का आरोप लगा रही थी. बड़ी संख्या मे बुद्धि जीवी भी यति नरसिम्हा नंद सरस्वती की आलोचना कर रहे हैं किंतु एक इंजीनियर से महंत बनने के पीछे एक ऐसी कथा है जिससे कदाचित अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं. तो आइये जानते हैं

लव जिहाद की एक घटना ने बना दिया नरसिंहानंद

दीपक त्यागी के यति नरसिंहानंद बनने के पीछे लव जिहाद की एक घटना ने बहुत अहम रोल अदा किया। वह घटना शम्भू दयाल कॉलेज में पढ़ने वाली त्यागी समाज की एक लड़की से जुड़ी है जिसने तब रो-रो कर उनको (यति नरसिंहानंद) अपनी पीड़ा बताई थी। पीड़िता ने उन्हें बताया था कि एक मुस्लिम सहेली ने उसकी जान-पहचान अपने मजहब के लड़के से करवा दी थी। दोस्ती के ही दौरान मुस्लिम युवक ने पीड़िता के साथ अपने कुछ फोटो और वीडियो बना डाले थे। इसी फोटो व वीडियो को दिखाकर पीड़िता को कई मुस्लिम युवकों से संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था।तब पीड़िता ने दीपक त्यागी को यह भी बताया कि उसके मुस्लिम साथी ने उसको न सिर्फ अपने दोस्तों बल्कि कई नेताओं और यहाँ तक कि प्रिंसिपल तक के आगे परोसा था। लड़की ने दीपक त्यागी पर भी आरोप लगाया कि उनको चुप रहने के लिए कुछ न कुछ लालच दिया गया होगा। यहीं से दीपक त्यागी के मन को आघात लगा और वो हिंदुत्व की तरफ झुकते चले गए.

रूस में पढ़ाई, लंदन में नौकरी

वर्तमान में महामंडलेश्वर की पदवी प्राप्त महंत यति नरसिंहानन्द की उम्र लगभग 55 वर्ष है। उनके पिता रक्षा मंत्रालय में नौकरी करते थे। रिटायरमेन्ट के बाद वो कॉन्ग्रेस से जुड़ गए थे। उन्होंने अपने बेटे दीपक की शुरूआती शिक्षा-दीक्षा मेरठ से करवाई। हालाँकि वो मूलतः बुलंदशहर के निवासी थे। बाद में उच्च शिक्षा के लिए दीपक त्यागी रूस गए। यहाँ वो मॉस्को सहित अन्य कई शहरों में रहे। रूस में उन्होंने ‘मॉस्को इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल मशीन बिल्डिंग’ से मास्टर्स की डिग्री ली।

उन्होंने बतौर इंजीनियर लम्बे समय तक कार्य किया। तब दीपक त्यागी को लंदन तक से नौकरी के ऑफर मिले। उन्होंने यहाँ मार्केटिंग टीम का भी नेतृत्व किया। यति नरसिंहानंद का यह भी दावा है कि वो इजरायल की भी यात्रा कर चुके हैं और साथ ही उन्हें 1992 में ‘ऑल यूरोप ओलम्पियाड’ में गणित से विजेता घोषित किया गया था। कई अलग-अलग देशों में रहते हुए लगभग 10 वर्षों के बाद साल 1997 में दीपक त्यागी भारत लौट आए।

राजनीति से रहा जुड़ाव समाजवादी से भगवा का सफर

दीपक त्यागी (वर्तमान में यति नरसिंहानन्द) जब भारत लौटे तो उस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में में समाजवादी पार्टी का बोलबाला हुआ करता था, तब यूपी के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव माने जाते थे। दीपक त्यागी को एक बार समाजवादी पार्टी में यूथ विंग का अध्यक्ष पद ऑफर हुआ तो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस दौरान दीपक त्यागी के बहुत से मुस्लिम दोस्त भी बने। दीपक त्यागी के पूर्वज भी समाजवादी विचारधारा वाले थे।

भाजपा नेता के भाषणों से जगी हिंदुत्व में आस्था

यति नरसिंहानन्द ने कई बार खुले मंचों से भाजपा नेता बी एल शर्मा प्रेम (अब दिवंगत) को अपना गुरु बताया है। वो बताते हैं कि समाजवादी पार्टी का पदाधिकारी रहने के दौरान उनको कई बार बी एल शर्मा ‘प्रेम’ (बैकुंठ लाल शर्मा) के भाषण सुनने को मिला। उनके द्वारा रखे गए तथ्य और दिए जाने वाले सबूतों से दीपक त्यागी का झुकाव धीरे-धीर उनकी तरफ होने लगा। हालाँकि इसके बावजूद वो समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे।

डासना मंदिर को इस लिए बनाया अपना स्थाई ठिकाना

अपने एक इंटरव्यू में यति नरसिंहानंद ने ऑपइंडिया को बताया था कि हिन्दुओं को जागृत करने के लिए उनको एक स्थाई ठिकाने की जरूरत थी। आखिरकार उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाके डासना में मौजूद शक्तिपीठ देवी मंदिर को चुना। वहाँ जाने से पहले ही उनको पता चला था कि उनसे पहले भी कई संतों और महंतों की मंदिर में हत्या की जा चुकी थी। मंदिर में डकैती डालकर कई बार लूट भी हो चुकी थी।यति नरसिंहानंद बताते हैं कि दशकों पहले ही उस मंदिर पर मुस्लिम आबादी कब्ज़ा करने की कगार पर थी लेकिन उन्होंने ऐसा न होने देने का संकल्प लिया। इसी संकल्प के साथ वो डासना मंदिर के पुजारी बन गए और बाद में महंत। ताजा घटनाक्रम से पहले भी उन पर मंदिर में कई बार हमले की कोशिश की जा चुकी है। हालाँकि उन्होंने किसी डर या दबाव में मंदिर छोड़ने से साफ इंकार कर दिया।

आप इंडिया से साभार।।

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