BHAGWANNA PAHLVAAN : नारायणा दिल्ली के इस महान पहलवान को भूल गयी दुनिया

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नगाड़ा मीडिया स्पेशल रिपोर्ट

मल्ल युद्ध यानि कुश्ती भारत का परम्परागत खेल रहा है, वैदिक काल से लेकर महाभारत काल तक हर काल में कुश्ती का उल्लेख है, 19 सदी में भी भारत में कई ऐसे पहलवान हुए हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है।। आइये आज बात करते हैं दिल्ली के नारायणा गांव में जन्में भगवान्ना पहलवान की जिनका लोहा अंग्रेजी रियायत ने भी माना।।

नारायणा गांव दिल्ली में जन्में इस पहलवान ने कर दिया था कमाल

भगवान्ना पहलवान का जन्म 1885 मे नारायणा गॉव मे हुआ था । यह गॉव कभी दिल्ली के पास हुआ करता था, लेकिन अब ये दिल्ली के दक्षिण में स्थित है । उस समय अंग्रेजी राज हुआ करता था, 18 वर्ष की आयु में भगवान्ना पहलवान पुलिस में भर्ती हो गये थे । भगवानना की 7 फिट की उचाई उस समय भी लोगो के आकर्षण का केन्द्र हुआ करती थी । धोबी पाट और घिस्सा दॉव भगवान्ना के मुख्य दॉव थे ।

श्रीलंका के प्रसिद्ध पहलवान को चटाई थी धूल

एक समय का जिक्र है। पुलिस में भर्ती भगवाना पहलवान की यूनिट कोलम्बों श्रीलंका चली गई, जहां पर लोगों ने भगवान्ना को पहचान लिया क्योंकि वहाँ के लोगो ने इससे पहलें भगवान्ना का केवल नाम सुन रखा था, उनही दिनों महान पहलवान राममूर्ती भी कोलोम्बो आया हुआ था । राममूर्ती ने भगवान्ना को कुस्ती के लिये ललकार दिया । भगवान्ना ने राममूर्ति की चुनौती स्वीकार की, राममूर्ती भी राजा का प्रिय था । जब यह बात अंग्रेजो को पता चली तो अंग्रेजो ने भगवान्ना को कुस्ती ना लडने का फरमान सुना दिया तथा एक कमरे मे बन्द करदिया । अब भगवाना के मन मे एक विचार आया की यदि मै राममूर्ती से कुश्ती लडनें नही गया तो लोग सोचेगें कि भगवान्ना पहलवान डर गया है। जिस कमरे मे भगवान्ना पहलवान बन्द था भगवान्ना ने उस कमरे की एक खिडकी को उखाड लिया और चुप चाप कुस्ती लडने के लिये चला गया 40 वे मिन्ट मे भगवान्ना ने राममूर्ती को चित कर दिया । उस समय राममूर्ती और भगवान्ना की कुस्ती पर 5000( पॉच हजार) रूपये का इनाम रखा गया था जो भगवान्ना को दिये गये साथ साथ कुस्ती प्रेमियों ने मिलकर 1700 रू इक्टठा कर भगवान्ना को दिये । अग्रेजो की बात ना मानने का परिणाम यह हुआ आज भगवान्ना को सस्पेन्ड कर दिया गया ।

कुएं की चडस को अकेला खींचकर किया मंत्री को अचंभित

नौकरी छूटने के बाद भगवान्ना अपने गॉव नारायणा आ गया, खाली समय में भगवान्ना शिव मन्दिर मे जोर आजमाईश किया करता था, एक दिन भगवाना किसी काम से बाहर जा रहा था, उस समय पैदल के रास्ते हुआ करते थे, चलते चलते भगवान्ना को रास्ते मे प्यास लग गई तो रास्ते मे एक कुएं पर चडस रखा हुआ था जिसे दो बैल खीचा करते लेकिन वहॉ बैल नही थे तो भगवान्ना ने चडस को कुवे मे छोड पानी से भर जाने के बाद दोनो हाथो से खीचना आरम्भ कर दिया उसी समय एक राजा का एक वजीर वहा से गुजर रहा था उसने जब सात फिट उचें भीमकाय भगवान्ना को चडस खीचते हुये देखा तो वो वजीर भगवान्ना के पास आया । भगवान्ना ने चडस खीचकर पानी पिया व स्नान किया । बाद मे वह वजीर भगवान्ना को अपनी जान पहचान के एक मुसलमान रियासतदार जो कुश्ती प्रेमी था, के पास लाहोर मे छोड आया । भगवान्ना का ज्यादा दिन लाहोर मे मन नही लगा और एक साल बाद महाराष्ट्र मे कोल्हापुर आ गया । क्योकि कोल्हा पुर के महाराज भी कुस्ती प्रेमी थे और नौकरी करने के दौरान सस्पेंड होने से पहले कोलहापुर के महाराज से भगवान्ना की जान पहचान हो गई थी । कोल्हापुर के महाराज ने भगवान्ना को बहुत इज्जत दी और अपना दरवारी पहलवान घोषित कर दिया ।

गामा पहलवान को अखाड़े से बाहर पटक दिया था

भगवान्ना उम्र मे गामा पहलवान से 15 – 16 साल बडे थे । कहा जाता है। की एक बार गामा और भगवान्ना की कुस्ती हुई जिसमे भगवान्ना की ऑख के उपर चोट लग गई तथा लहू की धारा बह निकली जिसके बाद भगवान्ना ने गामा को उठाकर अखाडे के बहार पटक दिया यही पर इस कुस्ती मे विवाद हो गया और गामा के भाई ने गामा को लडने से मना कर दिया गामा ने यह कुस्ती बीच मे छोडदी जिसके बाद भगवान्ना को विजयी घोषित किया गया । महाराज ने खुश होकर भगवान्ना को सरकारी सम्मान के साथ साथ सोने के दो कडे और सोने के सिक्को से भरा एक थेला भेट किया यह घटना राम सिंह रावत की किताब (रवा राजपूतो का इतिहास के प्रथम खण्ड मे भी दर्ज है। )

शेर से बचाये थे महाराज कोल्हापुर के प्राण

कुछ दिन बीते थे की राजा के राज मे एक शेर आ गया महाराज ने अपने पहलवानो और कुछ सैनिको की सहायता से जिस खेत मे शेर छिपा था वो खेत घेर लिया अपने आप को घिरता देख शेर जैसे ही राजा की और लपका तो भगवानना ने शेर की कमर मे लाठी मार दी भगवान्ना की लाठी का वार इतना जोर दार था कि शेर का हाड बीच मे से टूट गया कुछ देर बाद शेर ने तडफकर दम तोडदिया । महाराज ने भगवान्ना को गले से लगा लिया जब यह बात महारानी को पता चली तो महारानी ने भगवान्ना के पैर छूने की इच्चछा जाहिर की थी हालाकि भगवान्ना ने एसा ना करने के लिये रानी से विनती की एक बार भगवान्ना अपने गॉव मे आये हुये थे भगवान्ना के खेत मे एक खेत एसा था जहा पर चारो और हरी फसल लहला रही थी पत्थर की कोहलडी को ले जाने मे बहुत सारी फसल नष्ट हो जाती तो मौके की नजाकत को देख भगवान्ना ने पत्थर की कोहलडी को जिसे खीचकर दो बैल चलते थे उसे कन्धे पर रख कर खेत मे पटक दिया था आज बेसक भगवान्ना पहलवान के स्वर्णिम नाम को समय की गर्द ने दवा दिया हो हममे से कई लोग आज भगवान्ना पहलवान के बारे मे ना जानते हो लेकिन एक दौर एसा था कि जिसमे माये रात को अपने बच्चो को भगवान्ना पहलवान की बहादुरी के किस्से सुनाती थी । आओ मिलकर इस महान यो़द्धा को नमन करे ।

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