नोएडा : नगाड़ा मीडिया
मुख्तार अंसारी एक ऐसा नाम जिसके नाम से एक समय सरकार, न्यायपालिका और कार्यपालिका सब जैसे कि शून्य मात्र थे, समय था 2008 जब माफिया और विधायक मुख्तार अंसारी की तूती पूरे यूपी में बोलती थी, और यह समय था योगी आदित्यनाथ के उद्भव का, ये समय था एक भगवा धारी के उदय का जिसकी गाथा सदियों तक सुनाई जानी बाकि है. ये समय था जब योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल में अपनी जड़ें मजबूती के साथ जमाने जा रहे थे, ऐसे समय में उनका सामना होना था एक ऐसी शख्सियत से जिसने अपराध में कदाचित PHD कर रखी थी.
2008 जब योगी आदित्यनाथ को घेरकर मारने का षडयंत्र हुआ था विफल
सन 2008 में दिन था 7 सितंबर, रेली के लिए एक काफिला जिसमें सेंकड़ों कारें और हजारों मोटरसाइकलों के साथ लोग आजमगढ़ की ओर अग्रसर हो रहे थे, ये काफिला किसी सामान्य व्यक्ति का नही बल्कि उस व्यक्ति का काफिला था जिसे दुनिया आज योगी आदित्यनाथ के नाम से जानती है, और योगी आदित्यनाथ उस समय तीसरी बार सांसद गौरखपुर चुने जा चुके थे, और उनकी लोकप्रियता ने कुख्यात मुख्तार अंसारी की पेशानी पर शिकन डाल दी थी, क्युकि योगी आदित्यनाथ दहशत और बदमाशी से त्रस्त पूर्वांचल के जनमानस के लिए सूर्य की किरण की भांति प्रगट हुए थे, लोग बड़ी संख्या में योगी आदित्यनाथ से जुड़ रहे थे ऐसे में ये रेली महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही थी,
अद्भुत कूटनीति से योगी आदित्यनाथ ने हमलावरों को दिया था चकमा
जब ये काफिला आजमगढ़ के थोड़ा पहले टकिया नामक स्थान पर पहुंचा तो दोपहर का समय हो गया था और इस स्थान को योगी की प्रस्तावित मोब लिंचिंग के लिए उपद्रवियों द्वारा चुना गया था, लगभग 1 बजकर 20 मिनट पर इस काफिले पर पत्थर बाजी और पैट्रोल बमों की बारिश आरम्भ हो गयी, उद्देश्य था योगी आदित्यनाथ के काफिले को तितर-बितर कर योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाना, उपद्रवियों द्वारा की गयी भीषण पत्थरबाजी और पैट्रोल बमबारी से समर्थकों में भगदड़ मच गयी, जैसी कई योजना थी काफिला कई हिस्सों में बट गया. कुछ गाडिय़ां आगे निकल गयी और बाकि उस पत्थरबाजी के चलते वहीं फंस गयी, उपद्रवियों ने अपने षड्यंत्र के अनुसार गाडिय़ों को घेरकर हमले शुरु किये किंतु किसी भी कार में उन्हे योगी आदित्यनाथ नही मिले, हंगामा बढ़ा तो सामान्य जन मानस ने मोर्च संभाला और कारों की ओर बढ़ने लगे, लोगों ने कारों के चारों ओर सुरक्षा घेरा बनाकर काफिले में आये लोगों की रक्षा की. बताया जाता है कि हमले की सूचना पाकर सिटी सर्किल अधिकारी शेलेंद्र श्रीवास्तव ने जबाबी कार्यवाही के आदेश दिये पुलिस की कई गाडिय़ां भी मौके पर पहुंची और जबाबी कार्यवाई में एक व्यक्ति मारा गया. तब जाकर काफिले में सम्मलित लोगों की जान में जान आयी और योगी आदित्यनाथ की कुशलता की जानकारी लेने का प्रयास किया गया, सभी गाड़ियों में योगी आदित्यनाथ नही मिले कदाचित उन्नत कूटनीति ने उनके प्राण बचाये, क्युकि योगी आदित्यनाथ को इस हमले का इनपुट था जिसके चलते उन्होने काफिले की सबसे आगे की गाड़ी में अपना स्थान अदल बदल लिया था, और हमले से पहले ही वह हमलावरों की पहुंच से बाहर निकल चुके थे।।
क्यू हमलावरों के निशाने पर थे योगी आदित्यनाथ
2008 में हुए अमदाबाद बम धमाकों से योगी आदित्यनाथ चिंतित थे। 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में 70 मिनट में 21 बम धमाके हुए थे, धमाकों में 56 लोगों की मौत हुई, 200 से ज्यादा घायल हुए थे।
अमदाबाद बम धमाकों के कुछ आरोपी आजमगढ़ से पकड़े गए थे, आजमगढ़ उस समय माफिया, अपराधी, गैंगस्टर मुख्तार अंसारी का गढ़ था, मुख्तार को तो तथाकथित रूप से उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव का संरक्षण भी प्राप्त बताया जाता था, न पुलिस का डर, न कानून का भय, सब अपनी जेब में। बड़े से बड़े रसूखदार जज, पुलिस महकमे के आला अधिकारी मुख्तार की जेब में हुआ करते थे।
उसी आजमगढ़ में गोरखपुर से तब के 3 बार के सांसद योगी आदित्यनाथ बड़ी रैली करने जा रहे थे। रैली में एक लाख से ऊपर लोगों के जुटने की तैयारी थी।
ये वही समय था जब पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ का उदय हो रहा था, मुख़्तार के आतंक से आतंकित हिन्दू समाज योगी आदित्यनाथ एक मसीहा के रूप में मिले। 2004 में योगी आदित्यनाथ तीसरी बार गोरखपुर से लोकसभा चुनाव जीत चुके थे। पूर्वांचल के हिन्दू समाज को एकत्रित करने के लिए, हिन्दू समाज की रक्षा के लिए 2002 में योगी आदित्यनाथ ने “हिन्दू युवा वाहिनी” का गठन कर दिया था
एक ओर लगातार लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के जीत का अंतर बढ़ रहा था तो दूसरी ओर हिन्दू युवा वाहिनी से बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे थे। जब योगी 2008 में अपने काफिले के साथ आजमगढ़ की ओर बढ़ रहे थे तब उन्हें कहां पता था कुछ पल बाद ही उनके काफिले पर जानलेवा हमला होने वाला था, घात लगाए माफिया मुख्तार अंसारी के गुर्गे योगी आदित्यनाथ के काफिले का इंतजार कर रहे थे।
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